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हर पल को खूशी से जीने को ही जिंदगी कहते है।

जिस पल आपकी मृत्यु हो जाती है, उसी पल से आपकी पहचान एक "बॉडी" बन जाती है। अरे "बॉडी" लेकर आइये,  "बॉडी" को उठाइये, "बॉडी" को सूलाइये  ऐसे शब्दो से आपको पूकारा जाता है, वे लोग भी आपको आपके नाम से नही पुकारते , जिन्हे प्रभावित करने के लिये आपने अपनी पूरी जिंदगी खर्च कर दी। इसीलिए निर्मिती" को नही निर्माता" को  प्रभावित करने के लिये जीवन जियो। जीवन मे आने वाले हर चूनौती को स्वीकार  करे।...... अपनी पसंद की चिजो के लिये खर्चा किजिये।...... इतना हंसिये के पेट दर्द हो जाये।.... आप कितना भी बूरा नाचते हो , फिर भी नाचिये।...... उस खूशी को महसूस किजिये।...... फोटोज् के लिये पागलों वाली पोज् दिजिये।...... बिलकुल छोटे बच्चे बन जायिये। क्योंकि मृत्यु जिंदगी का सबसे बड़ा लॉस नहीं है। लॉस तो वो है  के आप जिंदा होकर भी आपके अंदर जिंदगी जीने की आस खत्म हो चूकी है।..... हर पल को खूशी से जीने को ही जिंदगी कहते है। "जिंदगी है छोटी," हर पल में खुश हूं, "काम में खुश हूं," आराम में खुश हू, "आज पनीर नहीं," दाल में ही खुश हूं, ...

मानवाधिकार सुरक्षा एवं संरक्षण ऑर्गेनाइजेशन

https://youtu.be/21VbP3MvwH8 *मानवाधिकार सुरक्षा एवं संरक्षण ऑर्गेनाइजेशन द्वारा इस राष्ट्रीय स्तर की समस्या का समाधान किया गया आपकी भी कोई समस्याएं हैं जिनका समाधान नहीं हो रहा है आप संस्था की वेबसाइट पर अपनी शिकायत दर्ज करें हमारे यहां निशुल्क समाधान कराया जाता है*    www.humanrightss.org.in    संभागीय कार्यालय-  अमृत सागर कॉलोनी बगीचे के सामने रतलाम 457 001 उज्जैन संभाग उपाध्यक्ष प्रदीप सिंह सोलंकी -09340362143 तहसील उपाध्यक्ष उपेंद्र पाटोदिया -99268 09786 जितेंद्र वर्मा 9301813965 मानवाधिकार सुरक्षा एवं संरक्षण ऑर्गेनाइजेशन Help line no 09340362143 वेबसाइट www.humanrightss.org.in कार्यालय नंबर जिला रतलाम यूट्यूब चैनल https://youtube.com/c/MSSONews टि्वटर https://twitter.com/ManavadhikarO?s=08 फेसबुक https://www.facebook.com/humanrighss/

'मैं' को हराने के लिए ज्ञानशून्य होकर देखें

'मैं' को हराने के लिए ज्ञानशून्य होकर देखें ज्ञान के माता-पिता प्रश्न-उत्तर होते हैं। इनमें भी प्रश्न पिता और उत्तर माता है। जीवन में प्रश्न-उत्तर जितने और सुलझे हुए होंगे, ज्ञान उतना आसानी से और परिपक्व रूप में आएगा। चूंकि यह शिक्षा का दौर है तो ज्ञान तो अर्जित करना ही चाहिए, लेकिन अपने बच्चों को यह भी समझाएं कि इस समय विचारों की प्रधानता होती है और विचारों की बहुत अधिक जुगाली न की जाए। आवश्यकता से अधिक उठने वाले विचार यदि समय पर न रोके गए तो खतरनाक हो जाते हैं। उदासी और डिप्रेशन का कारण बन जाते हैं। इसीलिए कई बार पढ़े-लिखे लोग उदास पाए जाते हैं, अवसाद में डूबे दिखते हैं। कुछ समय के लिए विचारों को रोकना, जीवन में एक शून्यता लाना योग से संभव है। पढ़े लिखों, ज्ञानियों के साथ एक दिक्कत यह भी हो जाती है कि वे सदैव 24 घंटे ही पढ़े-लिखे बने रहते हैं। जबकि यदि शांति प्राप्त करना हो तो कुछ समय के लिए ज्ञानशून्य भी होना पड़ेगा। ज्ञान के अजीर्ण को रोका नहीं गया तो हम कोई पुस्तक पढ़कर भी पुस्तक नहीं पढ़ेंगे, उसमें खुद को पढ़ेंगे। यहीं से हमारा 'मैं' हावी हो जाता है। ज्ञानियों को ...