*एक महात्मा तीर्थयात्रा के सिलसिले में पहाड़ पर चढ़ रहे थे . पहाड़ ऊंचा था। दोपहर का समय था , और सूर्य भी अपने चरम पर था . तेज धूप , गर्म हवाओं और शरीर से टपकते पसीने की वजह से महात्मा काफी परेशान होने के साथ दिक्कतों से बेहाल हो गए .*
*महात्माजी सिर पर पोटली रखे हुए , हाथ में कमंडल थामे हुए दूसरे हाथ से लाठी पकड़कर जैसे-तैसे पहाड़ चढ़ने की कोशिश कर रहे थे . बीच-बीच में थकान की वजह से वह सुस्ता भी लेते थे .*
*पहाड़ चढ़ते - चढ़ते जब महात्माजी को थकान महसूस हुई तो वह एक पत्थर के सहारे टिककर बैठ गए . थककर चूर हो जाने की वजह से उनकी साँस ऊपर नीचे हो रही थी . तभी उन्होंने देखा कि एक लड़की पीठ पर बच्चे को उठाए पहाड़ पर चढ़ी आ रही है .*
*वह लड़की उम्र में काफी छोटी थी और पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने के बाद भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी ! वह बगैर थकान के पहाड़ पर कदम बढ़ाए चली आ रही थी . पहाड़ चढ़ते चढ़ते जैसे ही वह लड़की महात्मा के नजदीक पहुंची , महात्माजी ने उसको रोक लिया .*
*लड़की के प्रति दया और सहानुभूति जताते हुए उन्होंने कहा कि बेटी पीठ पर वजन ज्यादा है , धूप तेज गिर रही है , थोड़ी देर सुस्ता लो .*
*उस लड़की ने बड़ी हैरानी से महात्मा की तरफ देखा और कहा कि महात्माजी ! आप यह क्या कह रहे हैं ! वजन की पोटली तो आप लेकर चल रहे हैं मैं नहीं ! !! मेरी पीठ पर कोई वजन नहीं है . मैं जिसको उठाकर चल रही हूँ वह मेरा छोटा भाई है और भाई का कोई वजन नहीं होता ! !!*
*महात्मा के मुँह से उसी वक्त यह बात निकली - क्या अद्भुत वचन है ! ऐसे सुंदर वाक्य तो मैंने वेद , पुराण , उपनिषद और दूसरे धार्मिक शास्त्रों में भी नहीं देखे हैं...!!!*
*सच में जहाँ आसक्ति है , मोह है , ममत्व है , वहीं पर बोझ है वजन है.. जहाँ प्रेम है , समर्पण है , अपनत्व है वहाँ कोई बोझ नहीं ! कोई वजन नहीं...! !!*
@*यूथ गरिमा*@