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जून, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अच्छे विचारों में अपनी ऊर्जा खर्च करें

 अच्छे विचारों में अपनी ऊर्जा खर्च करें सकारात्मक सोच से सफलता का संबंध एनर्जी यानी ऊर्जा से है। भौतिकी के अनुसार संसार में केवल दो ही तत्व हैं: एक है ऊर्जा और दूसरा है पदार्थ । इन्हीं की अंतःक्रिया से यह संसार बना है। जिस तरह फेंगशुई के सिद्धांतों पर चलकर घर से नकारात्मक ऊर्जा हटाते हैं, सकारात्मक सोच भी उसी फेंगशुई की तरह है। पॉजिटिव एनर्जी ज्यादा होगी, तो शरीर में लाभदायक रसायनों का स्त्राव होगा, जिससे शरीर की इम्यूनिटी भी मजबूत होगी। मस्तिष्क सबसे ज्यादा ऊर्जा का उपयोग करता है। ये ऊर्जा को विचारों या संवेगों में बदलता है। दिमाग में हर दिन लगभग 60 हजार विचार आते हैं, इसलिए विचारों में हमारी बहुत सारी ऊर्जा खर्च होती है। गौर करने वाली है कि अगर विचार सकारात्मक हैं, तो ऊर्जा सकारात्मक रूप धारण कर लेती है और नहीं तो नकारात्मक। फिर हमारा ऊर्जावान विचार अपनी समतुल्य वस्तु आकर्षित करता है। जैसा नेपोलियन हिल ने कहा था, 'विचार वस्तु बन जाता है।' अधिकांश लोगों को पता भी नहीं होता कि उनकी ज्यादातर मुसीबतों का कारण वे खुद गुलाब के पौधे को बड़ा करने के लिए देखभाल करनी होती है, जबकि खरप...

मनुष्य अपने ही कर्मो का फल पाता है

मनुष्य अपने ही कर्मो का फल पाता है | कर्म कैसे फल देता है यह इस प्रसंग से समझे* *एक दिन एक राजा ने अपने तीन मन्त्रियो को दरबार में  बुलाया, और  तीनो  को  आदेश  दिया  के  एक  एक  थैला  ले  कर  बगीचे  में  जाएं और वहां  से  अच्छे  अच्छे  फल  जमा  करें*.    *तीनो  अलग  अलग  बाग़  में प्रविष्ट  हो  गए* , *पहले मन्त्री ने  कोशिश  की  के  राजा  के  लिए  उसकी पसंद  के  अच्छे  अच्छे  और  मज़ेदार  फल  जमा  किए जाएँ* , *उस ने  काफी  मेहनत  के  बाद  बढ़िया और  ताज़ा  फलों  से  थैला  भर  लिया* , *दूसरे मन्त्री ने सोचा  राजा  हर  फल  का परीक्षण  तो करेगा नहीं , इस  लिए  उसने  जल्दी  जल्दी  थैला  भरने  में*  *ताज़ा , कच्चे , गले  सड़े फल  भी  थैले  में...

#Happy Father's Day#

"पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं" पिता, पिता जीवन है, सम्बल है, शक्ति है, पिता, पिता सृष्टि में निर्माण की अभिव्यक्ति है, पिता अँगुली पकडे बच्चे का सहारा है, पिता कभी कुछ खट्टा कभी खारा है, पिता, पिता पालन है, पोषण है, परिवार का अनुशासन है, पिता, पिता धौंस से चलना वाला प्रेम का प्रशासन है, पिता, पिता रोटी है, कपडा है, मकान है, पिता, पिता छोटे से परिंदे का बडा आसमान है, पिता, पिता अप्रदर्शित-अनंत प्यार है, पिता है तो बच्चों को इंतज़ार है, पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं, पिता है तो बाज़ार के सब खिलौने अपने हैं, पिता से परिवार में प्रतिपल राग है, पिता से ही माँ की बिंदी और सुहाग है, पिता परमात्मा की जगत के प्रति आसक्ति है, पिता गृहस्थ आश्रम में उच्च स्थिति की भक्ति है, पिता अपनी इच्छाओं का हनन और परिवार की पूर्ति है, पिता, पिता रक्त निगले हुए संस्कारों की मूर्ति है, पिता, पिता एक जीवन को जीवन का दान है, पिता, पिता दुनिया दिखाने का अहसान है, पिता, पिता सुरक्षा है, अगर सिर पर हाथ है, पिता नहीं तो बचपन अनाथ है, पिता नहीं तो बचपन अनाथ है, तो पिता से बड़ा तुम अपना नाम...

प्राण का दूसरा नाम जीवन है

प्राण का दूसरा नाम जीवन है।  जहाँ प्राण है, वहां जीवन है। प्राण जीवन का चैतन्य रूप है इसलिए प्राण को चेतना भी कहते हैं। चेतना का केंद्र ह्रदय है। मानव जीवन में यदि कोई सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु है तो वह है--प्राण।  प्राण ही आयु है।  प्राण ही शरीर में तीन अग्नियाँ है- जठराग्नि, वड़वाग्नि और दावाग्नि।  शरीर का ताप दावाग्नि का परिणाम है। भूख-प्यास जठराग्नि का परिणाम है।  शरीर में रक्त की गति, ह्रदय की धड़कन और वायु का सञ्चालन वाड़वाग्नि का परिणाम है। ब्रह्माण्ड के मूल में प्राण ही हैं, इसीलिए प्राण विद्या को विश्वविद्या बतलाया गया है। पंचतत्व अर्थात् पंचभूत, प्राण और मन इन तीनों का समन्वय जीवनतत्व है।  जीवनतत्व क्या है, उसके नियम क्या हैं- इनका उत्तर वेद विद्या है।  जहाँ प्राण है, वहां जीवन है और जहाँ जीवन है उस स्थान को 'यज्ञ' कहा गया है। इस यज्ञ का प्रारम्भ प्राण के दो रूपों-श्वास-प्रश्वास के स्पंदन से होता है। अन्य शक्तियों की तरह इसके भी ऋण से धन और धन से ऋण की ओर आना-जाना होता है। प्राण शक्ति का ऋण से धन की ओर जाने की क्रिया को 'एत च्' और धन से ऋण की ओर...

जहाँ प्रेम है , समर्पण है , अपनत्व है वहाँ कोई बोझ नहीं ! कोई वजन नहीं...! !! यूथ गरिमा

   *एक महात्मा तीर्थयात्रा के सिलसिले में पहाड़ पर चढ़ रहे थे . पहाड़ ऊंचा था। दोपहर का समय था , और सूर्य भी अपने चरम पर था . तेज धूप , गर्म हवाओं और शरीर से टपकते पसीने की वजह से महात्मा काफी परेशान होने के साथ दिक्कतों से बेहाल हो गए .* *महात्माजी सिर पर पोटली रखे हुए , हाथ में कमंडल थामे हुए दूसरे हाथ से लाठी पकड़कर जैसे-तैसे पहाड़ चढ़ने की कोशिश कर रहे थे . बीच-बीच में थकान की वजह से वह सुस्ता भी लेते थे .* *पहाड़ चढ़ते - चढ़ते जब महात्माजी को थकान महसूस हुई तो वह एक पत्थर के सहारे टिककर बैठ गए . थककर चूर हो जाने की वजह से उनकी साँस ऊपर नीचे हो रही थी . तभी उन्होंने देखा कि एक लड़की पीठ पर बच्चे को उठाए पहाड़ पर चढ़ी आ रही है .* *वह लड़की उम्र में काफी छोटी थी और पहाड़ की चढ़ाई चढ़ने के बाद भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी ! वह बगैर थकान के पहाड़ पर कदम बढ़ाए चली आ रही थी . पहाड़ चढ़ते चढ़ते जैसे ही वह लड़की महात्मा के नजदीक पहुंची , महात्माजी ने उसको रोक लिया .* *लड़की के प्रति दया और सहानुभूति जताते हुए उन्होंने कहा कि  बेटी पीठ पर वजन ज्यादा है , धूप तेज गिर र...

गुस्सा आए तो उस घटना को लिख लें

      * गुस्सा आए तो उस घटना को लिख लें *  जब आपको गुस्सा आए तो उस घटना को डायरी में लिख लें। इस प्रैक्टिस को सात दिनों तक करें। इसके बाद डायरी दोबारा उठाएं और गुस्सा आने के कारणों को पढ़ना शुरू करें। आपको लगेगा कि अधिकांश बातों पर आपका गुस्सा करना बेवजह था। तो इससे पहले कि गुस्सा आप पर नियंत्रण पा ले, आप उसे कंट्रोल कर लीजिए। यह आपकी खुशियों को कई गुना बढ़ा देगा।