प्राण का दूसरा नाम जीवन है।
जहाँ प्राण है, वहां जीवन है।
प्राण जीवन का चैतन्य रूप है इसलिए प्राण को चेतना भी कहते हैं। चेतना का केंद्र ह्रदय है। मानव जीवन में यदि कोई सर्वाधिक महत्वपूर्ण वस्तु है तो वह है--प्राण।
प्राण ही आयु है।
प्राण ही शरीर में तीन अग्नियाँ है-
जठराग्नि, वड़वाग्नि और दावाग्नि।
शरीर का ताप दावाग्नि का परिणाम है। भूख-प्यास जठराग्नि का परिणाम है। शरीर में रक्त की गति, ह्रदय की धड़कन और वायु का सञ्चालन वाड़वाग्नि का परिणाम है। ब्रह्माण्ड के मूल में प्राण ही हैं, इसीलिए प्राण विद्या को विश्वविद्या बतलाया गया है। पंचतत्व अर्थात् पंचभूत, प्राण और मन इन तीनों का समन्वय जीवनतत्व है।
जीवनतत्व क्या है,
उसके नियम क्या हैं-
इनका उत्तर वेद विद्या है।
जहाँ प्राण है, वहां जीवन है और जहाँ जीवन है उस स्थान को 'यज्ञ' कहा गया है। इस यज्ञ का प्रारम्भ प्राण के दो रूपों-श्वास-प्रश्वास के स्पंदन से होता है। अन्य शक्तियों की तरह इसके भी ऋण से धन और धन से ऋण की ओर आना-जाना होता है। प्राण शक्ति का ऋण से धन की ओर जाने की क्रिया को 'एत च्' और धन से ऋण की ओर जाने की क्रिया को 'प्रेति च्' कहते हैं। प्राण के स्पन्द